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राजा की उपमा
४ : जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो।
राया व रज्जपब्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ॥ साधु अपने प्रव्रज्या काल में सब लोगों का पूजनीय होता है, किन्तु धर्म से भ्रष्ट हो जाने के पश्चात् वह अपूजनीय हो जाता है और वह राज्य भ्रष्ट राजा के समान सदा पछताता रहता है॥४॥ THE METAPHOR OF KING
4. When he practises the ascetic discipline, a shraman is revered by all but when he falls from grace he becomes an object of disrespect and always repents like a dethroned king.
५ : जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अमाणिमो।
सेट्टिव्व कव्वडे छूडो स पच्छा परितप्पइ॥ ___ साधु जब संयम का पालन करता है, तब तो सर्वमान्य होता है, किन्तु संयम छोड़ने के पश्चात् अत्यन्त अपमानित हो जाता है और उसी प्रकार परिताप करता है, जिस प्रकार किसी छोटे-से गाँव में सीमाबद्ध किया हुआ श्रेष्ठी रहता है॥५॥
5. When he practises the ascetic discipline a shraman draws regard from all, but when he falls from grace he becomes an object of disregard and repents like a merchant confined to a small village. विशेषार्थ :
श्लोक ५. सेटिव्व कव्वडे छूडो-कर्बट में अवरुद्ध किया हुआ श्रेष्ठी। कर्बट का अर्थ हैछोटा गाँव, जहाँ बाजार या क्रय-विक्रय का साधन न हो। श्रेष्ठी शब्द आजकल सामान्य व्यापारी या महाजन के अर्थ में प्रचलित है, किन्तु प्राचीन समय में श्रेष्ठी शब्द बहुत सम्मानजनक था। निशीथभाष्य में बताया है जिसमें लक्ष्मी देवी का चित्र अंकित हो वैसा वेष्टन बाँधने की जिसे राजा के द्वारा अनुज्ञा/सन्मान प्राप्त हुआ वह व्यक्ति श्रेष्ठी कहलाता है। 'हिन्दू राज्य तंत्र' के अनुसार पौर सभा का वह प्रधान या प्रमुख व्यक्ति जो उसी नगर का प्रमुख व्यापारी या महाजन होता था उसे श्रेष्ठी (श्रेष्ठ) या प्रधान कहा जाता था।
-(आचार्य महाप्रज्ञ दशवै., पृ. ५१४)
प्रथम चूलिका : रतिवाक्या First Addendum : Raivakka
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