Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 435
________________ १० Anusu दोषों से असार नहीं होने देता, क्रय-विक्रय और संग्रह से दूर रहता है तथा सब प्रकार के संगों से अछूता रहता है, वह भिक्षु है॥१६॥ ___16. One who is not attached to his clothing and other equipment, who is free of all worldly ties, who collects alms from unknown families, who does not allow his discipline (of basic and auxiliary rules) to become worthless by faults, who remains away from sale, purchase and storing, and who is untouched by any indulgences (in subjects of sense organs), he alone is a bhikshu. विशेषार्थ : ___ श्लोक १६. अन्नायउंछं पुल-अज्ञात-कुल की एषणा करने वाला। निप्पुलाए-निष्पुलाक-मूलगुण व उत्तरगुणों में दोष लगाने से संयम निःसार बन जाता है उसे 'पुलाक' कहते हैं। अतः निष्पुलाक का अर्थ हुआ-मूलगुण व उत्तरगुण में दोष नहीं लगाने वाला। सव्वसंगावगए-संग का अर्थ है इन्द्रियों के विषय। सभी प्रकार के इन्द्रिय-विषयों से परे रहने वाला, निर्लिप्त, अनासक्त अथवा अछूता। ELABORATION: (16) Annayauncch pul—who collects alms from unknown families. Nippulaye-pulak means to become worthless due to faults in discipline of basic and auxilary rules. Opposite of it is Nishpulak. Savvasangavagaye—untouched by any indulgences in subjects of sense organs. १७ : अलोल भिक्खू न रसेसु गिद्धे उंछं चरे जीविय नाभिकंखे। इडिं च सक्कारण पूयणं च चए ठियप्पा अणिहे जे स भिक्खू॥ जो लोलुपता नहीं रखता, रसों में मूर्च्छित नहीं होता, अज्ञात-कुलों से लाया हुआ थोड़ा-थोड़ा भिक्षान्न भोगता है, असंयम जीवन की इच्छा नहीं करता, ऋद्धि, दशम अध्ययन : सभिक्षु Tenth Chapter : Sabhikkhu ३५३ स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498