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जो गृहस्थ इहलौकिक सुखोपभोगों के लिये, अपनी आजीविका के लिए Ka अथवा दूसरों के हित के लिए शिल्प आदि विविध कलाओं में निपुणता प्राप्त
करना चाहते हैं वे कोमल शरीर वाले होने पर भी शिक्षा काल में बन्धन, ताड़न एवं परितापन के घोर तथा दारुण कष्ट सहन करते हैं।।१३-१४॥
TOLERATING PUNISHMENT BY GURU FOR WORLDLY KNOWLEDGE
13, 14. The householders, who want to acquire expertise in various arts and crafts in order to earn their living or to serve others, willingly tolerate extreme hardship and discomfort of pain and confinement during the period of learning, in spite of having delicate physique. विशेषार्थ :
श्लोक १३-१४. सिप्पा-शिल्प-कारीगरी, यथा कुम्हार, सुनार, लुहार आदि के काम। णेउणियाणि-नैपुण्य-कौशल, वाण-विद्या, लौकिक कला, चित्रकला आदि। सिक्खमाणा-शिक्षा काल में अथवा शिक्षक के द्वारा कष्ट आदि प्राप्त करते हैं। ELABORATION:
(13, 14) Sippa-crafts like those of a potter, gold-smith, blacksmith etc.
Nehuniyani-expertize like that in archery, painting and other mundane skills and arts.
Sikkhaman-during student life; get punished by the teacher during studies.
१५ : तेऽवि तं गुरुं पूयंति तस्स सिप्पस्स कारणा।
सक्कारंति नमसंति तुट्टा निद्देसवत्तिणो॥ ____ फिर भी वे ताड़न करने पर भी सन्तुष्ट हो उस शिल्प-शिक्षा के लिए Rs शिल्पाचार्य को पूजते हैं, सत्कार करते हैं, नमस्कार करते हैं और उसकी आज्ञा
का पालन करते हैं॥१५॥
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
को
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