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हीणपेसणे-हीनप्रेषण-प्रेषण का अर्थ है नियोजन अथवा काम में संलग्न होना। जो ऐसा TA न करे वह हीनप्रेषण अर्थात् गुरु की आज्ञा का यथासमय पालन न करने वाले हीनप्रेषण है।
असंविभागी-जो अपने द्वारा लाई हुई वस्तु अन्य साधर्मिकों में नहीं बाँटता। ELABORATION:
(23) Sahas-courage; originally it was used in the derogatory sense like foolhardiness.
Heenapesane--Preshan means to indulge in some work. The opposite of this is Heenapreshan. Here it means one who does not obey the guru's order at once.
Asamvibhagi-who does not share his alms with felloow asceties. २४ : निद्देसवित्ती पुण जे गुरूणं सुअत्थधम्मा विणयम्मि कोविआ। तरित्तु ते ओहमिणं दुरुत्तरं खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया॥
त्ति बेमि। जो गुरु के आज्ञाकारी है, श्रुतार्थ धर्मा-(श्रुत रहस्य के ज्ञाता) एवं विनय मार्ग के विशेषज्ञ होते हैं, वे ही इस कठिन संसार-सागर को पार कर कर्मों का | नाश करके सर्वोत्कृष्ट मोक्ष स्थान में जाते हैं॥२४॥
ऐसा मैं कहता हूँ।
24. The ascetics who are obedient, who have understood the scriptures and who are experts in the ways of vinaya are the ones who cross this terrible ocean of mundane life, destroy the karmas and attain the most excellent Moksha or liberation..... so I say.
. ॥ नवम अध्ययन दूसरा उद्देशक समाप्त ॥ END OF NINTH CHAPTER (SECOND SECTION)
नवम अध्ययन : विनय समाधि (दूसरा उद्देशक) Ninth Chapter : Vinaya Samahi (2nd Sec.) ३१९
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Sharma
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