Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 407
________________ AWAIIMil सामने से आते हुए कटुवचन के प्रहार कानों से हृदय में पहुंचकर दौर्मनस्यदुर्भाव उत्पन्न कर देते हैं। जो शूरवीरों के अग्रणी, इन्द्रियजयी पुरुष इन वचन प्रहारों को 'यह मेरा धर्म है' मानकर शान्तिपूर्वक सहन कर लेते हैं, वे जगत् में पूज्य होते हैं।॥८॥ 8. Bitter words launched at someone enter through the ears and reach the mind to provoke bitter feelings. Considering it to be his duty, the best among warriors and braves and the conqueror of senses tolerates these with equanimity. He is a worthy one. ए विशेषार्थ श्लोक ८. परमग्गसूरे-परमानशूरः-शूरों में अग्रणी। स्थानांगसूत्र में चार प्रकार के शूर बताए हैं। युद्ध-शूर, तपस्या-शूर, दान-शूर और धर्म-शूर। इन सबमें धर्म-शूर (धार्मिक श्रद्धा से अथवा यह समझकर कि यह मेरा धर्म है, कष्ट सहन करने वाला) परमान-शूर होता है। ELABORATION: (8) Paramaggasure-the best among braves; according to Sthanang Sutra there are four types of braves-brave in war, brave in austerities, brave in charity and brave in religion. Of these the brave in religion is considered to be the best of braves because he tolerates all afflictions considering that tolerance is his duty. ९ : अवन्नवायं च परम्मुहस्स पच्चक्खओ पडिणीअं च भासं। ओहारिणिं अप्पिअकारिणिं च भासं न भासिज्ज सया स पुज्जो॥ जो पुरुष पीठ पीछे किसी की निन्दा नहीं करते और सामने विरोधी (पीड़ाकारी) वचन नहीं कहते। निश्चयकारी एवं अप्रियकारी वचन भी नहीं वोलते, वे ही सदा संसार में पूज्य होते हैं।९॥ 9. He who does not slander someone in his absence and use malicious words in his presence and never uses dogmatic and offensive language is a worthy one. नवम अध्ययन : विनय समाधि (तीसरा उद्देशक) Ninth Chapter : Vinaya Samahi (3rd Sec.) ३२५ Patainme FCITrinik Mystu LAMANDIDI Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498