Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 429
________________ GILLAR ___ जो आगम विहित विधि अनुसार विविध प्रकार के अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को पाकर 'यह कल तथा परसों के दिन काम आयेगा' इस विचार से उक्त भोज्य पदार्थों का न स्वयं संचय करता है और न औरों से करवाता है, वह भिक्षु है।॥८॥ NEGATION OF STORING 8. After getting numerous eatables of the four classes, one who refrains from storing or making others store those eatables with the purpose of consuming them the next day or. the day after, he alone is a bhikshu. ९ : तहेव असणं पाणगं वा विविहं खाइमसाइमं लभित्ता। छंदिय साहम्मियाण भुंजे भोच्चा सज्झायरए य जे स भिक्खू॥ ___ जो निर्दोष विधि से अशनादि चारों प्रकार का आहार मिलने पर अपने साधर्मि साधुओं को भोजनार्थ निमंत्रित करके ही आहार करता है और आहार करके श्रेष्ठ स्वाध्याय कार्य में संलग्न हो जाता है, वह भिक्षु है॥९॥ 9. After getting nurserous eatables of the four classes, one who invites his fellow ascetics before eating and who devotes his time to the commendable work of studies after his meals, he alone is a bhikshu. संयम-ध्रुवयोग १० : न य वुग्गहियं कहं कहेज्जा न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते। संजमधुवजोगजुत्ते उवसंते अविहेडए जे स भिक्खू॥ जो कलह उत्पन्न करने वाली कथा नहीं करता, क्रोध नहीं करता, मन एवं इन्द्रियों को सदा संयत रखता है, पूर्ण रूप से शान्त रहता है, संयम-क्रियाओं में ध्रुवयोगी है। (मन-वचन-काया के योगों को स्थिर रखता है) कष्ट आ पड़ने पर आकुलता से मुक्त रहता है और दूसरों का अनादर नहीं करता, वह भिक्षु कहलाता है।॥१०॥ ! दशम अध्ययन : सभिक्षु Tenth Chapter : Sabhikkhu ३४७ OURUTV Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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