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विनयसमाधि
सूत्र ४. चउव्विहा खलु विणयसमाही तं जहा-(१) अणुसासिज्जंतो MA सुस्सूसइ (२) सम्मं संपडिवज्जइ (३) वेयमाराहयइ (४) न य भवइ
अत्तसंपग्गहिए। चउत्थं पयं भवइ। भवइ य इत्थ सिलोगो२: पेहेइ हिआणुसासणं सुस्सूसइ तं च पुणो अहिहिए।
न य माणमएण मज्जइ विणयसमाही आययट्टिए॥ विनयसमाधि के चार प्रकार हैं। यथा-(१) गुरु के अनुशासन में रहा हुआ, || गुरु के सुभाषित वचनों को सुनने की इच्छा करे; (२) गुरु वचनों को सम्यक
प्रकार से स्वीकार करे; (३) श्रुतज्ञान की पूर्णतया आराधना करे; तथा (४) गर्व या से आत्म-प्रशंसा न करे। यह चतुर्थ पद है, इस पर एक श्लोक है॥४॥
___ जो मुनि, गुरुजनों से हितानुशासन शिक्षण सुनने की इच्छा करता है, सुनकर उसको यथार्थ रूप से समझता है, सुनने एवं समझने के अनुसार ही आचरण करता है, साथ ही आचरण करता हुआ मैं विनयसमाधि कुशल हूँ इस प्रकार का गर्व भी नहीं करता, वही आत्मार्थी होता है।॥२॥ VINAYA SAMADHI
4. There are four categories of Vinaya samadhi-1. while working under the commands of the guru, to desire to listen to his aphorisms, 2. to follow the dictates of the guru sincerely, 3. to work to absorb all the knowledge of scriptures, and 4. not to indulge with pride in self-praise. These are the four categories and there is a verse about this.
2. Only that ascetic is spiritual who desires to listen to the lessons about spiritual discipline, understands the same properly, mulls his conduct accordingly, and is not proud of his proficiency in the Vinaya samadhi.
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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