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संवर का उपदेश ४ : वहणं तसथावराण होइ पुढबी-तण-कट्ठनिस्सियाणं।
तम्हा उद्देसिअं न भुंजे नो वि पए न पयावए जे स भिक्खू॥ SS भोजन बनाते/पकाते समय पृथ्वी, तृण, काठ आदि के आश्रय में रहे हुए त्रस IAN स्थावर जीवों का घात होता है, अतएव जो औद्देशिक आदि आहार नहीं भोगता है,
अन्नादि स्वयं नहीं पकाता है तथा दूसरों से भी नहीं पकवाता है, वह भिक्षु है॥४॥
OBSERVE SAMVAR
4. One who refrains from eating food specially made for him, cooking or making others cook food knowing that while cooking mobile and immobile living organism present within earth, straw or wood are destroyed, he alone is a bhikshu. ५ : रोइअ नायपुत्तवयणे अत्तसमे मन्नेज्ज छप्पिकाए।
पंच य फासे महव्वयाई पंचासवसंवरे जे स भिक्खू॥ जो ज्ञातपुत्र (भगवान महावीर) के वचनों पर श्रद्धा रखकर षट्काय के सभी
जीवों को अपनी आत्मा के समान प्रिय समझता है तथा पाँच महाव्रतों का 1. यथावत् पालन करता है, पाँच आम्रवों का निरोध करता है, वह भिक्षु है॥५॥
____5. Having faith in the words of Jnataputra, one who considers all living beings of the six classes dear as his own soul, properly follows the five great vows and stops the five types of karmic inflow, he alone is a bhikshu. विशेषार्थ : ___ श्लोक ५. पंचासव-पाँच आम्रव-आम्नवों की गिनती दो तरह से की जाती है(१) मिथ्यात्व, (२) अविरति, (३) प्रमाद, (४) कषाय, और (५) योग। तथा--स्पर्श, रस, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र। (जिनदासचूर्णि) में-पंचासवसंवरे णाम पंचिंदियसंवुडे-पाँच इन्द्रियों के अनुकूल-प्रतिकूल विषय सामने आने पर उनमें तुष्ट व रुष्ट नहीं होना-इसी अर्थ में पंचानव-संवर की व्याख्या की है।
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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