Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 424
________________ NITISEME दसम अज्झयणं : सभिक्खु दशम अध्ययन : सभिक्ष TENTH CHAPTER : SABHIKKHU HE IS BHIKSHU of fis. भिक्षु के आदर्श गुण १ : निक्खम्ममाणाए बुद्धवयणे निच्चं चित्तसमाहिओ हवेज्जा। इत्थीणवसं न आवि गच्छे वंतं नो पडिआयई जे स भिक्खू॥ ___ जो श्री जिनेश्वर देव के उपदेश अनुसार दीक्षा ग्रहण कर बुद्ध पुरुषों के | वचनों में रमण करता है। स्त्रियों के वश में नहीं होता, त्याग किये हुए विषय भोगों का वापस सेवन नहीं करता, वह भिक्षु है॥१॥ THE IDEAL VIRTUES OF A BHIKSHU 1. One who gets initiated according to the doctrine of Jina and dwells upon the word of the enlightened, who is not drawn to women and does not regress into the mundane pleasures he has abandoned, he alone is a bhikshu (shraman or ascetic). विशेषार्थ : श्लोक १. निक्खम्ममाणाए-आज्ञा से निष्क्रमण कर। आज्ञा का अर्थ है वचन, सन्देश, उपदेश या तीर्थंकर-वाणी। निष्क्रमण का अर्थ है-द्रव्यगृह (घर या गृहस्थभाव) तथा भावगृह (ममत्वभाव) का त्यागकर आत्म-कल्याण के पथ पर बढ़ना, दीक्षा लेना। चित्तसमाहिओ-चित्त की समाधि वाला, चित्त से पूर्णतया प्रसन्न। जिसका चित्त पूर्णतया समाधि में लीन होता है। नका ३४२ श्रीदशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra Annuarya Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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