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कर्मनिर्जरा का ही लक्ष्य रखता है। वह पुराने पापकर्मों का नाश कर अपनी TRA आत्मा को तपःसमाधि में युक्त करता है॥४॥ TAPAH SAMADHI
6. There are four categories of Tapah samadhi-An ascetic should not indulge in tap (austerities) for acquiring(1) pleasures of this world or mundane pleasures, (2) pleasures in the next birth or divine pleasures, (3) fame and glory, and (4) anything else but shedding the already acquired karmas. These are the four categories and there is a verse about this.
4. Ashraman who is ever involved in a variety of austerities never desires for any mundane or divine achievements. His sole goal is the shedding of the karmas. He destroys his acquired evil karmas and helps his soul attain the Tapah samadhi. आचारसमाधि
सूत्र ७. चउव्विहा खलु आयारसमाही भवइ तं जहा-(१) नो इहलोगट्टयाए आयारमहिट्ठिज्जा (२) नो परलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा (३) नो कित्तिवण्णसद्दसिलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा (४) नन्नत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिट्ठिज्जा।
चउत्थं पयं भवइ। भवइ य इत्थ सिलोगो
आचारसमाधि के चार प्रकार हैं। यथा-(१) इहलोक के लाभ हेतु आचार का पालन नहीं करना चाहिए; (२) परलोक के लाभ हेतु आचार-पालन नहीं करना चाहिए; (३) कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक के लिये भी आचार-पालन नहीं करना चाहिए; (४) केवल आर्हत्हेतु-अरिहंतों द्वारा प्ररूपित संवर चारित्र धर्म की प्राप्ति के अतिरिक्त अन्य उद्देश्य से आचार-पालन नहीं करना चाहिए। यही चतुर्थ पद है। यहाँ एक श्लोक कहा गया है।॥७॥
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नवम अध्ययन : विनय समाधि (चौथा उद्देशक) Ninth Chapter : Vinaya Samahi (4th Sec.) ३३५
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