Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 415
________________ विशेषार्थ : सूत्र २. अत्तसंपग्गहिए-आत्म-संप्रगृहीत-आत्म-अभिमान में लिप्त। आत्मोत्कर्ष करने वाला। मैं विनीत हूँ, मैं कर्मठ हूँ ऐसा सोचना आत्मोत्कर्ष है। पेहेई-स्पृहयति-देखना; प्रार्थना करना; इच्छा करना। ELABORATION: (2) Attasampaggahiye-one who indulges in self-pride; one who praises himself. Thinking I am humble, I am deligent, etc. ____Pehei-to see; to request; to desire. श्रुतसमाधि ___ सूत्र ५. चउव्विहा खलु सुयसमाही भवइ तं जहा-(१) सुअं मे भविस्सइ त्ति अज्झाइअव्वं भवइ (२) एगग्गचित्तो भविस्सामि त्ति अज्झाइअव्वं भवइ (३) अप्पाणं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइअव्वं भवइ (४) ठिओ पर ठावइस्सामित्ति अज्झाइअव्वं भवइ। चउत्थं पयं भवइ। भवइ य इत्थ सिलोगो३ : नाणमेगग्गचित्तो अ ठिओ अ ठावयई परं। सुआणि य अहिज्झित्ता रओ सुअसमाहिए॥ श्रुतसमाधि के चार प्रकार हैं। यथा-(१) मुझे श्रुतज्ञान की प्राप्ति होगी, इसलिए अध्ययन करना चाहिए; (२) मैं एकाग्रचित्त हो जाऊँगा, अतः अध्ययन करना चाहिए; (३) मैं अपनी आत्मा को धर्म में स्थापित कर सकूँगा, अतः श्रुत का अभ्यास करना योग्य है; तथा (४) मैं स्वयं धर्म से स्थित होकर दूसरे भव्य जीवों को भी धर्म में स्थापित कर सकूँगा, इसलिए मुझे शास्त्र का अध्ययन करना चाहिए। यह चतुर्थ पद हुआ, और यहाँ एक श्लोक है॥५॥ ___ श्रुत अध्ययन के द्वारा ज्ञान विस्तीर्ण होता है, चित्त की एकाग्रता होती है, तथा वे धर्म में स्वयं स्थिर होते हैं और दूसरों को भी धर्म में स्थिर करते हैं। ऐसा मुनि अनेक प्रकार के श्रुतों का अध्ययन करके श्रुतसमाधि रत हो जाता है॥३॥ नवम अध्ययन : विनय समाधि (चौथा उद्देशक) Ninth Chapter: Vinaya Samahi (4th Sec.) ३३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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