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१२ : तहेव डहरं व महल्लगं वा इत्थिंपुमं पव्वइअं गिहिं वा।।
नो हीलए नो वि अ खिंसइज्जा थंभं च कोहं च चए स पुज्जो॥ गुणों को धारण करने से साधु और अगुणों से असाधु होता है। अतएव साधु (अच्छे) गुणों को तो ग्रहण करे और असाधु गुणों (दुर्गुणों) को छोड़े। क्योंकि आत्मा को आत्मा से पहचानकर राग-द्वेष में समभाव रखने वाले गुणी साधु ही पूज्य हैं॥११॥
जो बालक, वृद्ध, स्त्री, पुरुष, दीक्षित और गृहस्थ आदि की अवमानना व निन्दा नहीं करता तथा क्रोध और मान के दोषों का त्याग करता है, वह पूज्य है।॥१२॥ ACQUIRE VIRTUES
11, 12. By acquiring virtues one becomes virtuous (sadhu) and by acquiring vices one becomes evil (asadhu). Therefore, one should acquire virtues and abandon vices. A virtuous ascetic who, knowing self through self (introspection), remains balanced in fondness and revulsion both, is a worthy one.
He who does not insult or slander ascetics or householders, men or women, young or old; and becomes free of vices of anger and conceit is a worthy one. विशेषार्थ :
श्लोक १२. नो हीलए नो वि अ खिंसइज्जा-लज्जित नहीं करना, निंदा नहीं करना। किसी को उसके दुर्गुणों या हीनता की याद दिलाकर लज्जित करने को हीलना कहते हैं और यह कार्य बारंबार करने को खिंसना कहते हैं। ELABORATION:
(12) Heelaye—to belittle; to put some one to shame by reminding about his vices and shortcomings. Khinsaejja-to insult or slander; to put someone to shame (heelaye) again and again. १३ : जे माणिआ सययं माणयंति जत्तेण कन्नं व निवेसयंति।
ते माणए माणरिहे तवस्सी जिइंदिए सच्चरए स पुज्जो॥
नवम अध्ययन : विनय समाधि (तीसरा उद्देशक) Ninth Chapter : Vinaya Samahi (3rd Sec.)३२७
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