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नवमं अज्झयणं : विणय समाही : तइओ उद्देसो नवम अध्ययनः विनय समाधिः तीसरा उद्देशक
NINTH CHAPTER (THIRD SECTION): VINAYA SAMAHI THE BLISS OF HUMBLENESS
गुरु-सेवा की विधि
१ : आयरिअं अग्गिमिवाहि अग्गी सुस्सूसमाणो पडिजागरिज्जा । आलोइअं इंगिअमेव नच्चा जो छन्दमाराहयई स पुज्जो ॥
जिस प्रकार आहिताग्नि- अग्निहोत्री ब्राह्मण, अग्नि की पूजा-सेवा करने में सतत सावधान रहता है, उसी प्रकार बुद्धिमान् शिष्य आचार्य की पूजा अर्थात् सेवा-शुश्रूषा करने में जागरूक रहे। क्योंकि जो आचार्य की दृष्टि आलोकित एवं इंगित आदि को जानकर उनके भावानुकूल चलता है, वही पूजनीय होता है ॥ १ ॥
THE METHOD OF SERVING THE GURU
1. As a Brahmin, doing the Yajna rituals, is ever cautious in worshiping the fire so should a wise pupil be ever alert in worshiping and serving the teacher. Because only he who understands the language of eyes and gestures of the guru and acts accordingly is a worthy one.
विशेषार्थ :
श्लोक १. आलोइयं-आलोकित - आलोकित का अर्थ है शब्द से कुछ भी न कहकर गुरु दृष्टि उठाकर देखे, उनके देखने से ही शिष्य गुरु का अभिप्राय - गुरु की दृष्टि समझ लेवे । इंगित - संकेत | मन का भाव बताने वाली अंगचेष्टा । जैसे पानी की तरफ इशारा देखकर शिष्य समझ लेवे गुरुदेव को पानी की जरूरत है।
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
ATELLI
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