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स्थविर-जो ज्ञान में ज्येष्ठ होते हैं। (३) पर्याय-ज्येष्ठ-जो दीक्षा काल में ज्येष्ठ होते हैं। यहाँ इस बात का महत्त्व बताया है कि जाति और श्रुत में ज्येष्ठ नहीं होने पर भी पर्याय-ज्येष्ठ के | प्रति विनय रखना चाहिए। ELABORATION:
(3) Pariyaya jettha—senior in initiation into the order. Another term used for the senior ascetics is sthavir. They are of three classes—(1) Jati-sthavir or senior in age, (2) Shrut-sthavir or senior in knowledge, and (3) Paryaya-jyeshtha. Here the importance is given to the third.
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आचार विधि ४ : अन्नायउंछं चरइ विसुद्धं जवणट्ठया समुआणं च निच्चं।
अल अं नो परिदेवइज्जा लडुं न विकत्थयई स पुज्जो॥ ५ : संथारसिज्जासणभत्तपाणे अप्पिच्छया अइलाभे वि संते।
जो एवमप्पाणभितोसइज्जा संतोसपाहन्नरए स पुज्जो॥ जो संयममय यात्रा के निर्वाह हेतु विशुद्ध, सामुदानिक एवं अज्ञात कुलों से बिना अपना परिचय दिए थोड़ा-थोड़ा ग्रहण किया हुआ आहार भोगते हैं और जो भिक्षा न मिलने पर दुःखी नहीं होते या मिलने पर गर्व या स्तुति नहीं करते वे साधु पूज्य होते हैं॥४॥ ___ जो संस्तारक, शय्या, आसन, भोजन आदि के प्रचुरता से मिल जाने पर भी अल्पेच्छा रखते हैं, सदा संतोष प्रधान जीवन जीते हैं तथा अपनी आत्मा को सभी प्रकार से प्रसन्न रखते हैं वे ही साधु पूज्य होते हैं ॥५॥ THE CONDUCT
4, 5. The ascetic who, for subsistence on the path of discipline, eats only the pure and proper food collected a little each from numerous houses of low and high status; and who neither laments nor gets elated on getting or not getting alms is a worthy one.
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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