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नवमं अज्झयणं : विणय समाही : पढमो उद्देसो नवम अध्ययन: विनय समाधि : प्रथम उद्देशक NINTH CHAPTER (FIRST SECTION) : VINAYA SAMAHI
THE BLISS OF HUMBLENESS
अविनय का फल १ : थंभा व कोहा व मयप्पमाया गुरुस्सगासे विणयं न सिक्खे।
सो चेव उ तस्स अभूइभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ॥ ___ जो साधु अहंकार, क्रोध, मद तथा प्रमाद के कारण गुरुओं के समीप विनय धर्म की शिक्षा ग्रहण नहीं करता है, तो वे अहंकार आदि दुर्गुण उसके ज्ञान आदि सद्गुणों का उसी प्रकार नाश कर देते हैं, जिस प्रकार वाँस का फल स्वयं बाँस का नाश करने वाला होता है॥१॥ FRUITS OF RUDENESS
1. If under the influence of conceit, anger, intoxication and inactivity an ascetic does not take lessons of vinaya these same vices destroy all his virtues including knowledge just as the bamboo is destroyed by its own fruit. विशेषार्थ :
श्लोक १. पमायं-यहाँ प्रमाद का अर्थ इन्द्रियों की आसक्ति, नींद, मद्यपान, विकथा अ K
विणयं-विनय का अर्थ अनुशासन, नम्रता और आचारविधि है। विनय के भेद हैंग्रहण-विनय अथवा शिक्षा-विनय-अर्थात् विनय के अन्तर्गत आने वाले उपरोक्त विषयों का ज्ञान। आसेवन-विनय-अर्थात् उक्त ज्ञान का अनुपालन तथा अभ्यास करना।
नवम अध्ययन : विनय समाधि (प्रथम उद्देशक) Ninth Chapter : Vinaya Samahi (Ist Sec.) २९९
2016
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