________________
WRITTENA
liberation. It is vinaya that yields other desired fruits like fame, the coveted scriptural knowledge, etc. विशेषार्थ :
श्लोक २. परमो-परम-अंतिम फल। विनय मूल है और उसका अंतिम फल है मोक्ष। इस वाक्य में मध्यवर्ती अवस्थाएँ/उपलब्धियाँ विकास क्रम से स्वभावतः उपस्थित होती हैं, जैसेज्ञान, सुगति, सुकुल में जन्म, अनेक प्रकार की विभूतियाँ आदि। (देखें चित्र क्रमांक २१) ELABORATION:
(2) Paramo-ultimate. This term indicates that besides the ultimate there should be many other fruits this tree yields in process. According to the commentators, the other common fruits that this trunk yields are knowledge high rebirth, human birth in a family of high status, overpowering influence, regal grandeur, divine pleasures and many other achievements. (illustration No. 21) अविनीति : काठ समान
३ : जे अ चंडे मिए थद्धे दुव्वाई नियडी सढे।
वुज्झइ से अविणीयप्पा कटुं सोअगयं जहा॥ जो क्रोधी, मृग (-अज्ञानी) स्तब्ध (अकड़बाज) कटुभाषी, शठ-कपटी और असंयमी हैं; वे विनयहीन पुरुष जल-प्रवाह में पड़े हुए काठ के समान संसार-समुद्र में बहते जाते हैं ॥३॥ (देखें चित्र क्रमांक २२) RUDE PERSON: A LOG OF WOOD
3. The angry, ignorant, stubborn, belligerent, deceitful and undisciplined disciples who are devoid of vinaya are swept away in the waves of the ocean that is mundane life, like a log in the rapids. (illustration No. 22)
४ : विणयं पि जो उवाएणं चोइओ कुप्पई नरो।
दिव्वं सो सिरिमिज्जतिं दंडेण पडिसेहए॥ नवम अध्ययन : विनय समाधि (दूसरा उद्देशक) Ninth Chapter : Vinaya Samahi (2nd Sec.) ३०९ ।
अजब 10
PAN IMURDIWAN
ECLEE
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org