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चित्र परिचय : २१
Illustration No. 21
धर्मवृक्ष का मूल : विनय HUMILITY: THE TRUNK OF THE TREE OF DHARM
मूलाउ खंधप्पभवो-वृक्ष के मूल से स्कन्ध, स्कन्ध से शाखाएँ, उनसे प्रशाखाएँ (छोटी डालियाँ), फिर उनसे पत्र, पुष्प, फल आदि रस उत्पन्न होते हैं, इसी प्रकार इस धर्मरूपी वृक्ष का मूल विनय है और उसका परम फल सर्वोत्कृष्ट फल हैमोक्ष-सुख।
चूर्णिकार कथन के अनुसार अपरम (मध्यवर्ती) फल के समान हैं-उच्च कुल में जन्म, विभिन्न प्रकार की ऋद्धियाँ, विभूतियाँ (प्रतीक कलश), सूर्य के समान प्रभावशीलता, राज्य वैभव, देवलोक के सुख तथा लोक में यश-कीर्ति (प्रतीक ध्वजा) आदि।
(अध्ययन ९/२, श्लोक १-२) From the trunk a tree gradually expands into branches and sub-branches, and produces leaves, flowers, and fruits. In the same way, the trunk of the tree of dharma is humility and its ultimate fruit is the blissful state of liberation.
According to the commentators, the other common fruits that this trunk yields are : high rebirth, various attainments and achievements (depicted by the urn), overpowering influence like the sun, regal grandeur, divine pleasures, and global fame (shown by the flag).
(Chapter 9/2, verses 1-2)
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