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SALIDIT
नवमं अज्झयणं : विणय समाही : बीओ उद्देसो नवम अध्ययन : विनय समाधि : दूसरा उद्देशक
NINTH CHAPTER (SECOND SECTION) : VINAYA SAMAHI
THE BLISS OF HUMBLENESS
विनय का परम फल १ : मूलाउ खंधप्पभवो दुमस्स खंधाउ पच्छा समुवेंति साहा।
साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता तओ सि पुष्पं च फलं रसो य॥ २ : एवं धम्मस्स विणओ मूलं परमो अ से मुक्खो।
जेण कित्तिं सुअं सिग्धं निस्सेसं चाभिगच्छई॥ सर्वप्रथम वृक्ष के मूल से स्कन्ध उत्पन्न होता है। स्कन्ध के पश्चात् शाखाएँ, शाखाओं से प्रशाखाएँ, प्रशाखाओं से पत्र, पत्रों के बाद पुष्प और पुष्पों के अनन्तर फल एवं फिर अनुक्रम से फलों में रस निष्पन्न होता है।।१।।
उसी प्रकार धर्मरूप वृक्ष का मूल है विनय और परम फल है मोक्ष। क्योंकि | विनय से ही यश-कीर्ति, श्लाघनीय श्रुत आदि इष्ट तत्त्व पूर्ण रूप से प्राप्त किये जाते हैं॥२॥
THE ULTIMATE FRUIT OF VINAYA ___1, 2. From the trunk, a tree gradually expands into branches and sub-branches, then it produces leaves, flowers, and fruits and at last juice is formed in the fruits thereof.
In the same way, the trunk of the tree of dharma is vinaya (humbleness) and its ultimate fruit is the blissful state of
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
Nitilan
( BALIMIM
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