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PARULARIA
१७ : सुच्चाण मेहावी सुभासिआइं सुस्सूसए आयरियप्पमत्तो। आराहइत्ता ण गुणे अणेगे से पावई सिद्धिमणुत्तरं॥
त्ति बेमि। मेधावी मुनि इन सुभाषित वचनों को सुनकर अप्रमत्त रहता हुआ आचार्य की सेवा करे। इस प्रकार वह अनेक सद्गुणों की आराधना करता हुआ अनुत्तर सिद्धिस्थान को पा लेता है॥१७॥
ऐसा मैं कहता हूँ। ___17. After hearing these aphorisms an intelligent ascetic should zealously serve the acharya. This is the way he can acquire many virtues and proceed towards the unique _accomplishment known as liberation. . . . . . So I say.
॥ नवम अध्ययन प्रथम उद्देशक समाप्त ॥
END OF NINTH CHAPTER (FIRST SECTION)
नवम अध्ययन : विनय समाधि (प्रथम उद्देशक) Ninth Chapter: VinayaSamahi (Ist Sec.) ३०७
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