________________
SHILPIR
[ नवम अध्ययन : विनय समाधि ]
प्राथमिक
IPIN
___इस अध्ययन का विनय समाधि नाम अनेक दृष्टियों से अर्थपूर्ण है। आठवें अध्ययन में आचार का वर्णन करने के पश्चात् गुरुजनों के साथ शिष्ट व अनुशासित व्यवहार की शिक्षा देने के लिए इस अध्ययन में बहुत ही सुन्दर उदाहरणों द्वारा विनय का वर्णन किया है। विनय शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। आगमों में आचार की विविध धाराओं के अर्थ में विनय शब्द का प्रयोग हुआ है।
प्रश्नव्याकरणसूत्र में बताया है-विनय तप है, तप धर्म है, इसलिए विनय की आराधना सतत करनी चाहिए।
ज्ञातासूत्र में जिनधर्म का मूल विनय बताकर उसके दो भेद बताये हैं-आगार-विनयरूप श्रावकधर्म तथा अणगार-विनयरूप पंचमहाव्रतधर्म। यहाँ विनय शब्द सम्पूर्ण आचारधर्म का प्रतिनिधित्व करता है। इसी अध्ययन में धर्म का मूल विनय बताया है और उसका परम फल मोक्ष। - औपपातिकसूत्र में विनय के सात भेद बताये हैं उनमें एक भेद है उपचार विनय। उपचार का अर्थ है व्यवहार। जैसे-गुरु आने पर खड़ा होना, हाथ जोड़ना, उनकी सेवा करना, बुलाने पर आसन से उठकर खड़े होकर बोलना आदि। व्यवहार में विनम्रता, गुरुजनों के प्रति आदर, बहुमान भाव रखना विनय का व्यवहार पक्ष है।
इस नवम अध्ययन में अधिकतर उपचार विनय के विविध रूपों पर प्रकाश डाला गया है।
नवम अध्ययन : विनय समाधि (प्रथम उद्देशक) Ninth Chapter : Vinaya Samahi (Ist Sec.) २९५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org