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AMITITUTAM
५५ : चित्तभित्तिं न निज्झाए नारिं वा सुअलंकियं।
भक्खरं पिव दतॄणं दिहिँ पडिसमाहरे॥ भले ही कोई स्त्री वस्त्राभूषण से विभूषित हो अथवा फटे-पुराने वस्त्र पहनी हो, ब्रह्मचारी पुरुष उस ओर टकटकी लगाकर नहीं देखे। यहाँ तक कि दीवार पर चित्रित स्त्री के चित्र को भी न देखे। यदि कभी स्त्री पर दृष्टि पड़ जाय तो तत्काल अपनी दृष्टि को उसी तरह हटा ले जैसे मध्यान्ह काल के सूर्य पर दृष्टि पड़ने पर स्वतः खिंच जाती है॥५५॥
55. Irrespective of her being dressed in rags or adorned with beautiful dress and ornaments, a celibate person should never stare at a woman. He should not even look at a fresco or a picture of a woman. If ever he chances to look at a woman he should at once shift his eyes as one does by reflex when he happens to look at the midday-sun.
५६ : हत्थपायपलिच्छिन्नं कन्ननासविगप्पियं।
अवि वाससयं नारिं बंभयारी विवज्जए॥ जिस स्त्री के हाथ-पैर कटे हुए हों एवं कान-नाक विकृत हों तथा जो चाहे सौ वर्ष की बुढ़िया हो, ऐसी विकृतांग स्त्री के संसर्ग से भी ब्रह्मचारी बचता रहे ॥५६॥
56. Even if a woman is ugly, with amputated limbs, disfigured ears and nose, or hundred years old, a celibate person should avoid her company.
५७ : विभूसा इत्थिसंसग्गो पणीअं रसभोअणं।
नरस्सत्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा॥ आत्मा की साधना में लगे ब्रह्मचारी के लिये शरीर की विभूषा, स्त्री का संसर्ग और पौष्टिक-विकारवर्धक भोजन तालपुट नामक जहर के समान है॥५७।।
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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