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चाहे कोई साधु से पूछे या कोई न पूछे, किन्तु कभी भी ( आसक्तिपूर्वक) सरस आहार को सरस और नीरस आहार को नीरस नहीं कहना चाहिए। और आहारमिलने न मिलने के विषय में भी कुछ नहीं कहना चाहिए ॥२२॥
EQUANIMITY IN GAIN OR LOSS
22. Irrespective of being asked or not, an ascetic should never call a tasty food tasty with fondness and plain food plain with dislike. He should also make no comments about getting food or not.
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साधु को स्वादिष्ट भोजन की लालसा से विशिष्ट व परिचित घरों में भिक्षार्थ नहीं जाना चाहिए। किन्तु व्यर्थ की वाचालतारहित हो अनेक स्थानों से समभावपूर्वक थोड़ा-थोड़ा आहार लेना चाहिए। तथा वहाँ से भी औद्देशिक, क्रीतकृत, आहत तथा अप्रासुक आहार लाकर नहीं खाना चाहिए ॥ २३ ॥
२३ : न य भोयणम्मि गिद्धो चरे उछं अयंपिरो । अफासुयं न भुंजिज्जा कीयमुद्देसि आहडं ॥
23. Driven by the desire to get tasty food a shraman should not go to known or chosen houses to seek alms. Without being very vocal he should collect food from many houses with equanimity. And from there also he should not bring and eat any kreet-krit (bought ), auddeshik ( meant for him), and ahrit (brought ) or faulty food.
विशेषार्थ :
श्लोक २३. उञ्छं–उञ्छ– यह शब्द मूलतः कृषि से सम्बन्धित है । सिट्टों को काटने को शिल कहते हैं और नीचे गिरे हुए धान को चुनकर एकत्र करने को उञ्छ कहते हैं। धीरे-धीरे शिलोञ्छ शब्द भिक्षा से जुड़ गया और इस संदर्भ में इसका अर्थ हो गया- खाने के बाद शेष बच रहा भोजन लेना या घर-घर जाकर थोड़ा-थोड़ा भोजन एकत्र करना । (आचार्य महाप्रज्ञ)
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ELABORATION:
(23) Unchham-this is basically an agricultural term. Harvesting is called shil and picking up the grains fallen on the श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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