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सुहरे-सुभरः-अल्पाहार से तृप्त होने वाला। यहाँ रूक्ष वृत्ति, सुसंतुष्ट, अल्पेच्छा और
सुभर शब्दों में परस्पर कारणभाव-फलभाव है। रूक्ष वृत्ति का फल सुसंतोष, सुसंतोष का KAN फल अल्पेच्छा और अल्पेच्छा का फल सुभरता है।
सोच्चाणं-श्रुत्वा-सुनकर-आचार्य हरिभद्रसूरि ने श्रावक-प्रज्ञप्ति की टीका में श्रावक के संदर्भ में श्रवण क्रिया के अर्थ का विस्तार करके बताया है-तदनुसार श्रवण का अर्थ सुनकर, समझकर जीवन में उतारना है। ऐसी श्रवण क्रिया करने वाला ही श्रावक होता है। अतः यहाँ जिनशासन सुनने का अर्थ उसे सुनना, समझना और जीवन में उतारना तीनों ही हैं। ELABORATION:
(25) Loohavatti to Suhare-these four terms have a cause and effect relationship. A person who is contented with dry or plain food is able to contain his desires and, in turn, is satisfied with meager food.
Socchanam-to listen; in his commentary on Shravak Prajnapti, Acharya Haribhadra Suri has expanded the meaning of the verb shravan in context with the popular word for Jain laity, shravak. He says that only he is a shravak who listens, understands and applies in life the preaching of the Jina.
२६ : कन्नसुक्खेहिं सद्देहिं पेमं नाभिनिवेसए।
दारुणं कक्कसं फासं काएण अहिआसए। कानों को प्रिय सुखकारी लगने वाले शब्दों में प्रेमभाव नहीं करना चाहिए। तथा कठोर और कर्कश स्पर्श को काया से समभावपूर्वक सहन करना चाहिए॥२६॥
26. One should not have fondness for the words that are pleasing to the ears. He should tolerate the harsh and unpleasant touch to the body with equanimity. विशेषार्थ :
श्लोक २६. श्लोक के प्रथम दो चरण में श्रोत्रेन्द्रिय तथा अन्तिम दो चरण में स्पर्शेन्द्रिय के निग्रह संबंधी निर्देश हैं। इसमें बीच की तीनों इन्द्रियों के निग्रह का इंगित भी समझना
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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