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36. As long as the old age has not atrophied the body, ailments have not overwhelmed it and as long as his faculties are not disabled, an ascetic should promptly indulge in religious activities. (illustration No. 15) कषायों का कटु फल
३७ : कोहं माणं च मायं च लोभं च पाववड्डणं।
वमे चत्तारि दोसे उ इच्छंतो हियमप्पणो॥ जो अपनी आत्मा का हित चाहता है, उसे क्रोध, मान, माया तथा लोभ इन चार महादोषों से पूर्ण रूप से बचना चाहिए। ये चारों दोष पाप को बढ़ाने वाले हैं॥३७॥ BITTER FRUITS OF PASSIONS
37. He who desires to benefit his soul should avoid the four great faults that are the sources of all sins-anger, conceit, deceit and greed.
३८ : कोहो पीइं पणासेइ माणो विणयनासणो।
माया मित्ताणि नासेइ लोहो सव्वविणासणो॥ ___ क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का नाश करने वाला है, माया मित्रता का नाश करती है और लोभ सभी सद्गुणों का नाश करने वाला है॥३८॥ (देखें चित्र क्रमांक १६) ____38. Anger destroys love and goodwill, conceit destroys humbleness, deceit destroys friendship and greed destroys all virtues. (illustration No. 16) विशेषार्थ : ____ श्लोक ३८. लोहो सव्वविणासणो-लोभः सर्व विनाशनः लोभ सर्वनाशी है। जिनदासचूर्णि में इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया है। लोभवश पुत्र अपने शान्त स्वभाव वाले उपकारी पिता से भी विमुख हो जाता है, यह प्रीति का नाश है। इच्छित प्राप्त न होने पर वह अपना
आठवाँ अध्ययन : आचार-प्रणिधि Eight Chapter : Ayar Panihi
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