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of its being true. This is because such utterance or language is the cause of karmic bondage. विशेषार्थ :
श्लोक ११. गुरुभू-ओवघाइणी-गुरु भूतोपघातिनी-अगस्त्यसिंह चूर्णि में इसके तीन अर्थ किए गए हैं-(१) वृद्ध आदि गुरुजन अथवा सब जीवों को संताप पहुँचाने वाली, (२) गुरु अर्थात् बड़े व्यक्तियों का उपघात करने वाली, तथा (३) गुरु अर्थात् विशाल या व्यापक रूप 55 में भूतोपघात करने वाली, जैसे कोई ऐसी बात कहना जिससे हिंसा भड़के और अनेक जीवों का घात या संहार हो जाए। ऐसा सत्य भी वर्जनीय है। ELABORATION:
(11) Gurubhoo-ovaghaini--Agastya Simha Churni gives three meanings of this term-(1) That which hurts elders and gurus, (2) That which hurts people of high status, and (3) That which causes harm to a large number of beings; just like a statement that provokes war. १२ : तहेव काणं काणे त्ति पंडगं पंडगे ति वा।
वाहियं वा वि रोगि त्ति तेणं चोरे त्ति नो वए। १३ : एएणन्नेण अद्वेण परो जेणुवहम्मई।
आयारभावदोसन्नू न तं भासिज्ज पनवं॥ इसी प्रकार सबका हित एवं प्रिय चाहने वाले साधु, काणे को काणा, नपुंसक || को नपुंसक, रोगी को रोगी एवं चोर को चोर भी न कहे ॥१२॥
आचार (-वचन सम्बन्धी) तथा भाव (-चित्त के द्वेष या प्रमाद) के दोषों को जानने वाला प्रज्ञावान् पुरुष पूर्वोक्त कोटि की अथवा अन्य कोटि की वैसी भाषा न बोले जिससे किसी अन्य प्राणी को दुःख पहुँचता हो॥१३॥ (देखें चित्र) ___12, 13. An ascetic who wishes well for all should note address someone as one-eyed, impotent, sick and thief, even if KI he is truly so.
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सातवाँ अध्ययन : सुवाक्य शुद्धि Seventh Chapter : Suvakkasuddhi
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SRO Pelamma Surwa
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