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SATELARAK
AAMRITED
२६ : तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य।
. रुक्खा महल्ल पेहाए नेवं भासिज्ज पन्नवं॥ २७ : अलं पासायखंभाणं तोरणाणि गिहाणि अ।
फलिहग्गलनावाणं अलं उदगदोणिणं॥ प्रज्ञावान् साधु उद्यानों, पहाड़ों एवं वनों में जाकर, वहाँ विशालकाय वृक्षों को देखकर ये वृक्ष प्रासाद, स्तम्भ, तोरण (नगर-द्वार), गृह, परिघ, अर्गला, नौका एवं पानी की कुण्डी-डोंगी बनाने के योग्य हैं। ऐसी सावध हिंसाकारी भाषा न बोले ।।२६-२७॥
26, 27. When he is in a jungle and sees giant trees, a wise ascetic should avoid the use of faulty and offensive language such as—these trees are suitable for making mansions, pillars, arches or gates, houses, door-bars, boat and water-tub.
२८ : पीढए चंगबेरे य नंगले मइअं सिआ।
जंतलट्ठी व नाभी वा गंडिया व अलं सिया॥ २९ : आसणं सयणं जाणं हुज्जा वा किंचवस्सए।
भूओवघाइणिं भासं नेवं भासिज्ज पनवं॥ __ऐसा भी न बोले-ये वृक्ष चौकी के लिए, चंगेरी (काष्ठ-पात्र) के लिए, हल के लिए, मयिक (कृषि उपकरण) के लिए, कोल्हू के लिए, पहिये की नाभि के लिए, सुनार आदि की ऐरण रखने की गण्डिका के लिए काम के हैं॥२८॥ ___ तथा “यह वृक्ष अच्छा है, इसकी आसन, शयन, यान अथवा उपाश्रय योग्य
अन्य कोई द्वार आदि वस्तु बहुत सुन्दर बन सकती है'' विवेकवान् साधु इस प्रकार की जीवों का घात करने वाली हिंसक भाषा का प्रयोग न करे।।२९॥
28, 29. He should also not say—these trees are suitable for making stools, vessels, ploughs and their accēssories, oil crusher, wheel-hubs, tool-stands for gold smiths, etc.
Also a disciplined shraman should not utter offending words that cause harm to beings such as—this tree is good
सातवाँ अध्ययन : सुवाक्य शुद्धि Seventh Chapter : Suvakkasuddhi
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Patram UpluWD
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