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.५ : सुद्धपुढवीं न निसीए ससरक्खम्मि य आसणे।
. पमज्जित्तु निसीइज्जा जाइत्ता जस्स उग्गहं॥ ___ संयम में शुद्ध समाधिभाव रखने वाला साधु, तीन करण ओर तीन योग से सचित्त पृथ्वी का, दीवार का, शिला का तथा पत्थर ढेले आदि का भेदन (फोड़ना) और घिसना कुरेदना आदि नहीं करें॥४॥
साधु को नैसर्गिक तथा सचित्त पृथ्वी पर तथा सचित्त रज से भरे हुए आसन A पर, उठना-बैठना नहीं कल्पता। यदि अचित्त भूमि पर बैठना हो तो भूमि के स्वामी से आज्ञा लेकर और भूमि को सावधानी से साफ कर बैठना चाहिए॥५॥ ____4, 5. A genuinely disciplined ascetic should not, through three means and three methods, indulge in activities like breaking, grinding or scraping of sachit earth, wall, rock, stone or a lump of sand.
A. shraman should not sit or stand on natural and sachit sand or a mattress covered by sachit dust. If at all he has to sit he should seek permission of the owner, carefully clean the place and then sit. अप्काय हिंसा-निषेध
६ : सीओदगं न सेविज्जा सिलावुटुं हिमाणि अ।
उसिणोदगं तत्तफासुयं पडिगाहिज्ज संजए॥ ७ : उदउल्लं अप्पणो कायं नेव पुंछे न संलिहे।
समुप्पेह तहाभूयं नो णं संघट्टए मुणी॥ शीतोदक (कच्चा जल), शिलावृष्ट (ओले), वर्षा का पानी तथा हिम (बर्फ) आदि सचित्त जल का साधु कदापि सेवन न करे। आवश्यकता हो तो, तप्त होने पर प्रासुक बना पानी आदि अचित्त जल ही ग्रहण करे॥६॥
बुद्धिमान् साधु जल से भीगे हुए शरीर को वस्त्र आदि से नहीं पोंछे और न ही हाथ से मले। जल से गीले शरीर को देखकर उसका स्पर्श भी न करे॥७॥
आठवाँ अध्ययन : आचार-प्रणिधि Eight Chapter : Ayar Panihi
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