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अट्टमं अज्झयणं : आयारपणिहि आठवाँ अध्ययन : आचार-प्रणिधि EIGHTH CHAPTER : AYAR PANIHI
CULTIVATING CONDUCT
आचार-निधि
१ : आयारप्पणिहिं लथु जहा कायव्व भिक्खुणा।
तं भे उदाहरिस्सामि आणुपुव्विं सुणेह मे॥ आचार की उत्कृष्ट निधि प्राप्त करने के बाद साधु का व्यवहार किस प्रकार होना चाहिए इसका वर्णन मैं तुमसे करता हूँ। उसे तुम सावधान होकर यथाक्रम सुनो॥१॥ WEALTH OF CONDUCT
1. Now I will tell you in proper sequence about what should be the behavior of a shraman after he acquires the unique wealth of right conduct. Listen attentively. विशेषार्थ :
श्लोक १. आयारप्पणिहि-आचार-प्रणिधि-आचार में समाधि अथवा एकाग्रता, सम्पूर्ण समर्पण तथा दृढ़ मानसिक संकल्प को आचार-प्रणिधि कहते हैं। आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज ने आचार-प्रणिधि का अर्थ साधु के उत्तम आचार रूप निधि या खजाना किया है। ELABORATION:
(1) Ayarappanihim-concentration and indulgence with complete devotion and resolve in following the right conduct. Acharyashri Atmaram ji M. has interpreted it as the unique wealth of good ascetic conduct.
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आठौं अध्ययन : आचार-प्रणिधि Eight Chapter : Ayar Panihi
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