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आठवाँ अध्ययन : आचार प्रणिधि
प्राथमिक
श्रमण के आचार का वर्णन तीसरे एवं छठे अध्ययन में किया जा चुका है। फिर सातवें अध्ययन में आचारवान की भाषासमिति का विशद वर्णन हुआ है। इस आचार - प्रणिधि नामक आठवें अध्ययन में आचार में निष्ठापूर्वक, लक्ष्यबद्धं गति करते हुए राग-द्वेष की वृत्तियों से निर्लिप्त रहने का मार्गदर्शन किया गया है।
आचार-प्रणिधि का एक अर्थ है आचाररूप निधि की रक्षा के उपाय । प्रणिधि का दूसरा अर्थ है--प्रवृत्ति। आचार्य भद्रबाहु ने दूसरे अर्थ को मुख्यता देते हुए कहा है - इस अध्ययन में श्रमण को दुष्प्रणिहित - राग-द्वेष में प्रवृत्त इन्द्रियों पर ज्ञान की लगामं डालने की सूचना दी है क्योंकि जैसे-अनियंत्रित अश्व सारथि को कुमार्ग में ले जाकर पटक देता है उसी प्रकार दुष्प्रणिहित इन्द्रियाँ श्रमण को कुमार्गगामी बना देती हैं
जस्स खलु दुप्पणिहिआणि इंदिआई तवं चरंतस्स । सो हीरइ असहीणेहिं सारही वा तुरंगेहि ॥
- नियुक्ति २९९
उन अप्रशस्त इन्द्रियों को प्रशस्त संयममार्ग में प्रवृत्त करना, कषायों पर नियंत्रण रखना, निद्रा, हास्य, विकथा आदि का वर्जन करना यही इस अध्ययन का मुख्य विषय है जिसे आचार - प्रणिधि कहा गया है।
इस अध्ययन की बहुत-सी गाथाएँ संक्षिप्त में बड़ी भावपूर्ण होने से सुभाषित की तरह हैं। कषायों का उपशमन करने का बहुत ही सुन्दर उपदेश इनमें है।
भद्रबाहु स्वामी के कथनानुसार नवें प्रत्याख्यान प्रवाद नामक पूर्व की तृतीय वस्तु से यह अंश उद्धृत किया गया है।
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आठवाँ अध्ययन : आचार-प्रणिधि Eight Chapter Ayar Panihi
LILAK
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DALILI FO
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