________________
@ymwww
If there is some necessity to say anything about purchase of low or high priced goods an ascetic should say only the right thing after properly ascertaining its authenticity. विशेषार्थ : ___ श्लोक ४६. इस सम्बन्ध में आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज ने स्पष्ट कहा है कि साधुओं को व्यापार सम्बन्धी वार्तालाप करने का कोई अधिकार ही नहीं है क्योंकि व्यवसाय का उनके लिए अभाव है। यथा-'नाधिकारोऽत्रतपस्विनां व्यापाराभावादिति।' ELABORATION:
(46) In this context Acharyashri Atmaram ji M. has conclusively said-ascetics have no right to say anything about business activities because any commerce is completely prohibited for them.
४७ : तहेवासंजयं धीरो आस एहि करेहि वा। . सय चिट्ठ वयाहि त्ति नेवं भासिज्ज पन्नवं॥ इसी क्रम में आगे-बुद्धिमान और धृतिवान् साधु असंयत गृहस्थों के लिए ऐसा न बोले-यहाँ बैठो, इधर आओ, अमुक कार्य करो, सो जाओ, खड़े रहो, चले जाओ, इस प्रकार के वचनों का प्रयोग नहीं करना। क्योंकि यह सब सावद्य भाषा है।॥४७॥
47. Also, wise and composed ascetics should not say to the householders—Sit here; come here; do this; go to sleep; keep | standing; go away; etc. This is faulty language.
४८ : बहवे इमे असाहू लोए वुच्चंति साहुणो।
न लवे असाहुं साहु त्ति साहुं साहु त्ति आलवे॥ ४९ : नाणदंसणसंपन्नं संजमे अ तवे रयं।
एवं गुणसमाउत्तं संजयं साहुमालवे॥ संसार में बहुत से ऐसे असाधु हैं, जो जनसाधारण में साधु कहे जाते हैं। किन्तु विवेकशील साधु, असाधु को साधु न कहे, अपितु जो साधु हो उसी को साधु कहे॥४८॥
|
२५४
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
CCToDAR Guruunil
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org