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६ : सखुड्डगवियत्ताणं वाहियाणं च जे गुणा।
अखंडफुडिया कायव्वा तं सुणेह जहा तहा॥ बालक, वृद्ध, व्याधिग्रस्त एवं सर्वथा स्वस्थ सभी व्यक्तियों को जिन गुणों की आराधना अखण्ड एवं अस्फुटित रूप से पालन करनी होती है उसको ध्यानपूर्वक यथार्थ रूप से मुझसे सुनो॥६॥
6. Give heed to what I say about the true form of the Ta virtues for which every young or old and sick or healthy should strive always and practice unfailingly. विशेषार्थ :
श्लोक ६. सखुड्डुग-क्षुद्रक-अल्प आयु, बालक। वियत्त-व्यक्त-वृद्ध।
अखण्डऽफुडिया-अखण्ड अस्फुटित-आंशिक विराधना न करना ‘अखण्ड' है और पूर्णतः विराधना न करना अस्फुटित है। यह साधना की पूर्णता की ओर इंगित है। (दशवकालिक सूत्र आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज, पृ. ३१८) ELABORATION:
(6) Sakhuddag-young; child. Viyatta-old.
Akhandaphudia--to avoid partial or complete indiscipline; absolute perfection in spiritual practices. (Dashavaikalik Sutra by Acharya Shri Atmaram Ji M., page 318)
७ : दस अट्ठ य ठाणाई जाइं बालोऽवरज्झई।
तत्थ अन्नयरे ठाणे निग्गंथत्ताओ भस्सई॥ जो व्यक्ति सम्पूर्ण अठारह स्थानों में से किसी एक भी स्थान- की विराधना करता है, वह साधुता के सर्वोच्च स्वरूप से भ्रष्ट हो जाता है॥७॥
7. The person who goes against even one of the eighteen principle codes falls from the lofty ideal of asceticism.
छठा अध्ययन :महाचार कथा Sixth Chapter:Mahachar Kaha
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