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सातवाँ अध्ययन : सुवाक्य शुद्धि ]
प्राथमिक
छठे महाचार कथा अध्ययन में आचार का वर्णन है। आचार का प्ररूपण करने के लिए वाणी की आवश्यकता होती है। वाणी का प्रयोग भाषासमिति है। भाषासमिति का अर्थ हैविवेकपूर्वक बोलना। नियुक्तिकार आचार्य ने कहा है-जिसे सावध और अनवद्य भाषा का विवेक नहीं है, उसे बोलना भी उचित नहीं है। उपदेश देने की बात तो बहुत दूर है। भाषा या वाक्य शुद्धि से भाव शुद्धि होती है। अहिंसा की साधना में बोलने से पूर्व तथा बोलते समय बहुत ही सूक्ष्म बुद्धि से विचार किया जाता है। प्रस्तुत वाक्य शुद्धि अध्ययन में अहिंसा दृष्टि को केन्द्र मानकर वाणी विवेक पर बहुत ही सूक्ष्मता के साथ वर्णन किया गया है।
भाषा के चार प्रकार-(१) सत्य भाषा, (२) असत्य भाषा, (३) मिश्र (सत्यासत्य) भाषा, तथा (४) असत्याऽमृषा (व्यवहार) भाषा, बताकर दो को (२-३) तो सर्वथा त्याज्य और दो में (१-४) विवेकपूर्वक वचन प्रयोग करने का निर्देश प्रस्तुत अध्ययन का विषय है। इसलिए दशवैकालिक की नियुक्ति में एक महत्त्वपूर्ण निर्देश दिया गया है
पुव्विं बुद्धीए पेहित्ता, पच्छा वक्कमुदाहरे।
अचक्खुओ व नेतारं बुद्धिमन्नेउ ते गिरा॥ -दशवै. नि. २९२ पहले बुद्धि से विचार करो, फिर वचन बोलो। जैसे अंधा अपने नेता (ले जाने वाले) का अनुगमन करता है वैसे ही वाणी बुद्धि का अनुगमन करे।
प्रस्तुत अध्ययन सत्य प्रवाद नामक छठे पूर्व से उद्धृत माना जाता है।
सातवाँ अध्ययन : सुवाक्य शुद्धि Seventh Chapter : Suvakkasuddhi
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