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सत्तमं अज्झयणं : सुवक्कसुद्धीम
सातवाँ अध्ययन : सुवाक्य शुद्धि SEVENTH CHAPTER: SUVAKKASUDDHI
PURITY OF SPEECH
चार प्रकार की भाषाएं १ : चउण्हं खलु भासाणं परिसंखाय पन्नवं।
दुण्हं तु विणयं सिक्खे दो न भासिज्ज सव्वसो॥ प्रज्ञावान् साधु भाषा के चतुष्प्रकारी स्वरूप को भली प्रकार जानकर शुद्ध वचन प्रयोग करने के लिये दो (भाषा) को विनयपूर्वक सीखे और दो (अशुद्ध भाषाओं) को बिल्कुल ही छोड़ देवे॥१॥ FOUR CATEGORIES OF SPEECH
1. An intelligent ascetic understands well the four categories of speech, learns two of these correctly for proper use and completely avoids the other two. विशेषार्थ :
श्लोक १. चउण्हं खलु भासाणं-चार प्रकार की भाषाएँ। यह भाषा के गुणात्मक भेद हैं(१) सत्य भाषा वह है जो वस्तुस्थिति का यथार्थ बोध हो जाने पर विचारपूर्वक बोली जाती है। (२) असत्य भाषा वह है, जो वस्तुस्थिति के पूर्ण ज्ञान के बिना अयथार्थ एवं क्रोध, मान, माया, लोभ आदि अन्य भावनाओं से प्रेरित होकर बोली जाती है। (३) मिश्र भाषा वह है, जिसमें सत्य एवं असत्य दोनों भाषाओं का संमिश्रण हो। (४) व्यवहार भाषा वह है, जो इच्छित अर्थ को स्पष्ट करती है और सामान्य जन को ग्राह्य होती है। यह सत्य की सहचरी के रूप में प्रयुक्त होती है और हानिकारक नहीं होती। इनमें प्रथम और चतुर्थ भाषा शुद्ध मानी जाती है तथा दूसरी और तीसरी अशुद्ध। सातवाँ अध्ययन : सुवाक्य शुद्धि Seventh Chapter : Suvakkasuddhi
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