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शंकित भाषा-निषेध ६: तम्हा गच्छामो वक्खामो अमगं वा णे भविस्सड।
अहं वा णं करिस्सामि एसो वा णं करिस्सइ॥ ७ : एवमाइउ जा भासा एसकालम्मि संकिया।
संपयाइयमढे वा तं पि धीरो विवज्जए॥ पापबंध के कारणों से बचते हुए बुद्धिमान् साधु, “कल हम अवश्य जायेंगे या
व्याख्यान देंगे या हमारा अमुक कार्य होगा या मैं अमुक कार्य करूँगा अथवा यह IN साधु अमुक कार्य करेगा" इत्यादि भाषा जो भविष्य संबंधी होने से फल की दृष्टि
से शंकायुक्त हो अथवा जिनके वर्तमान काल एवं अतीत काल सम्बन्धी अर्थ के विषय में शंका हो, ऐसी भाषा कदापि न बोले ॥६-७॥ NEGATION OF AMBIGUOUS SPEECH
6, 7. To avoid the causes of karmic bondage a wise shraman does not give statements like “Tomorrow I will certainly go or will give discourse or this work will be done or I will do this work or that ascetic will do this work.” In other words he should not say anything of uncertain future consequences or where there is any doubt about the message conveyed about the present or the past. विशेषार्थ : ___ श्लोक ६-७. यहाँ शंकित भाषा बोलने का निषेध है। काल की दृष्टि से शंकित भाषा के तीन प्रकार होते हैं-प्रथम भविष्यकालीन भाषा का सर्वथा निषेध है क्योंकि वह अनिश्चित होने के कारण सदैव शंकित है। दूसरा वर्तमानकालीन तथा तीसरा भूतकालीन इन दोनों के विषय में भाषण के पूर्व पूर्ण निश्चय किया जाना चाहिए और तब उसके अनुरूप भाषण किया जाना चाहिए। टीकाकार के अनुसार जैसे-जो स्त्री है या पुरुष है ऐसा निश्चय न होने तक किसी को स्त्री अथवा पुरुष कहना वर्तमान शंकित भाषा है। जो देखा था वह गाय थी या बैल याद न होने पर भी यह कहना कि गाय देखी थी अतीतकालीन भाषा का उदाहरण है। ELABORATION:
(6, 7) This is a negation of giving uncertain statements. With reference to time there are three types of uncertain language—The
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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