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ELABORATION:
(65) Naginassa-nude; in one commentary (churni) the meaning of this word is given as nude. Another commentary (teeka) elaborates it into two classes. One without even a semblance of any cover is called a perfect nude. One who is scantily clad in very ordinary clothes is called a formal nude.
According to Acharyashri Atmaram ji M. the use of old and unwashed clothes is also accepted as a type of nudity. The terms hairy and having long nails is meant for jin-kalpi ascetics who are perfect nudes. (Dashavaikalik Sutra, page 378) ६६ : विभूसावत्तियं भिक्खू कम्मं बंधइ चिक्कणं।
संसारसायरे घोरे जेण पडइ दुरुत्तरे॥ ६७ : विभूसावत्तियं चेयं बुद्धा मन्नंति तारिसं।
सावज्जबहुलं चेयं नेयं ताईहिं सेवियं॥ ६८ : खवंति अप्पाणममोहदंसिणो तवे रया संजम अज्जवे गुणे।
धुणंति पावाइं पुरेकडाइं नवाई पावाइं न ते करेंति॥ ६९ : सओवसंता अममा अकिंचणा सविज्जविज्जाणुगया जसंसिणो। उउप्पसन्ने विमले व चंदिमा सिद्धि विमाणाई उवेंति ताइणो॥
त्ति बेमि। जो मुनि शरीर सुन्दरता की चिन्ता में लगा रहता है, वह ऐसे चिकने (चीढे) कर्म बाँध लेता है, जिनके प्रभाव से वह दुस्तर एवं घोर संसार-सागर में जा गिरता है॥६६॥
तीर्थंकर भगवान ने विभूषा में आसक्त चित्त को कर्मबंधन का कारण बताया है। अतः विभूषा सावद्य बहुल (पापमय) होने से षट्काय के रक्षक साधुओं द्वारा सेवनीय नहीं है॥६७॥
छठा अध्ययन : महाचार कथा Sixth Chapter : Mahachar Kaha
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