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his bath, the water floods these holes and crevices killing living organisms therein. This violates the ascetic discipline.
That is why shramans never bathe either with fresh or warm water. The disciplined ascetics observe this harsh vow of not bathing strictly throughout their life. १८. विभूषा-वर्जन
६४ : सिणाणं अदुवा कक्कं लोद्धं पउमगाणि अ।
गायस्सुव्वट्टणट्ठाए नायरंति कया इवि॥ शुद्ध संयम-पालन के इच्छुक साधु को स्नान के समान ही अपने शरीर पर चन्दन, लोध्र, कुंकुम, केसर आदि सुगन्धित द्रव्यों का उबटन कदापि नहीं करना चाहिए॥६४॥ 18. NEGATION OF BEAUTIFYING THE BODY
64. Like bathing, an ascetic observing strict discipline should never use cleansing pastes made of fragrant things like Sandal-wood, lodhra and saffron to beautify the body. विशेषार्थ :
श्लोक ६४. सिणाणं-स्नान-यहाँ स्नान का अर्थ गन्ध चूर्ण है, अंग प्रक्षालन नहीं। आचार्य उमास्वाति ने इसे घ्राणेन्द्रिय का विषय बतलाया है (प्र. प्र. ४३)।
कक्कं-कल्कं-स्नान द्रव्य; विलेपन द्रव्य; गन्धाट्टक; सुगन्धित उबटन; या गन्ध द्रव्य का आटा। प्राचीन काल में स्नान हेतु सुगन्धित द्रव्यों का उपयोग किया जाता था। स्नान से पहले तेल मालिश और फिर चिकनाई हटाने के लिए पिसी हुई दाल या आँवले का उबटन लगाया जाता था। इसे चूर्णकषाय भी कहा जाता है (दशवैकालिक, आ. महाप्रज्ञ, पृ. ३२९)
लोद्ध-लोध्र-सुगन्धित वनस्पति विशेष। यह बंगाल, आसाम और हिमालय की पहाड़ियों में पाया जाता है।
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ELABORATION:
(64) Sinanam-to bathe; this also means use of liquid or powdered perfumes. According to Acharya Umaswati this is a subject of the sense of smell. (Prashamrati Prakaran 43)
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छठा अध्ययन : महाचार कथा Sixth Chapter:Mahachar Kaha
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