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1966
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5. NON-POSSESSION
18. Those who have strong faith in the words of Jnataputra do not desire to hoard things like various types of salt, oil, butter, molasses, etc. विशेषार्थ :
श्लोक १८. सन्निहि-सन्निधि-संग्रह करना। नमक आदि पदार्थों का संग्रह करना या रात । को अपने पास रखना-'सन्निधि' कहलाता है। जो पदार्थ लम्बे समय तक संग्रह किये जा सकें उन्हें अविनाशी द्रव्य कहते हैं, जैसे-नमक आदि। जो कुछ काल के बाद नष्ट हो जाते हैं उन्हें विनाशी द्रव्य कहते हैं। यहाँ अविनाशी द्रव्य के संग्रह को सन्निधि कहा है। निशीथचूर्णि में विनाशी द्रव्य के संग्रह को सन्निधि और अविनाशी द्रव्य के संग्रह को संचय कहा है। ELABORATION:
(18) Sannihim-to hoard or keep a thing overnight; here this refers to non-perishable things like salt. The things that can be stored for a long period are called non-perishable, like salt. Those that perish after some time are called perishable. Here storing of non-perishable things is termed as sannidhi. According to Nisheeth Churni this term is used for perishable things and the term used for non-perishable goods is sanchaya or collection.
१९ : लोभस्सेस अणुफासे मन्ने अन्नयरामवि।
जे सिया सन्निहिं कामे गिही पव्वइए न से॥ यह लोभ का ही प्रभाव है जो साधु-पद लेकर भी गृहस्थ की भाँति सन्निधि का दोष लगाता है, ऐसा मैं मानता हूँ। जो साधु, अणुमात्र भी सन्निधि की इच्छा रखता है उसे गृहस्थ ही समझना चाहिए, साधु नहीं॥१९॥ ___19. It is under the influence of greed that even those who have become ascetics indulge in a vice like hoarding, that is what I believe. An ascetic who has even a trace of a desire to a collect should be considered a householder not a shraman.
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छठा अध्ययन : महाचार कथा Sixth Chapter:Mahachar Kaha
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