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householders. For instance the use of fresh water for washing these utensils disturbs the water-bodied beings and also the careless splashing of this water is also harmful to beings.
There are chances of attracting faults like purva-karma and pashchaat-karma by eating from a householder's utensils. Therefore, such eating is prohibited for a shraman. So under no circumstance should ascetics eat from a householder's utensils. १५. पर्यकं-वर्जन
५४ : आसंदी-पलिअंकेसु मंचमासालएसु वा।
अणायरियमज्जाणं आसइत्तु सइत्तु वा॥ गृहस्थ के बैठने के जो आसन हैं, जैसे-आंसदी-भद्रासन, पलँग, खाट और आसालक-कुर्सी (जिसके पीछे टेकने का सहारा हो) आदि आसनों पर बैठने से तथा सोने से आर्य (श्रेष्ठ आचार-विचार वाले) मुनियों को अनाचरित नामक दोष लगता है ।।५४॥
15. NEGATION OF SITTING ON FURNITURE
54. If a disciplined ascetic sits or sleeps on a piece of furniture used by a householder such as a mattress, bed, cot and chair, he is responsible for a fault called anacharit (wrong conduct). अपवाद मार्ग
५५ : नासंदीपलिअंकेसु न निसेज्जा न पीढए।
__ निग्गंथाऽपडिलेहाए बुद्धवुत्तमहिट्ठगा॥ तीर्थंकर देवों की आज्ञा का पूर्णरूप में पालन करने वाले मुनि आसंदी, Ter पर्यंक, गद्दी और पीठ आदि पर (अपवादस्वरूप या विशेष परिस्थिति में) बिना IA
प्रतिलेखन किये बैठने, उठने और सोने की क्रियाएँ कदापि नहीं करते हैं॥५५॥
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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