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who is not fully conversant with the rules and akalp-sthapana akalp or the things that are genuinely faulty. ४८ : पिंडं सिज्जं च वत्थं च चउत्थं पायमेव य।
अकप्पिअं न इच्छिज्जा पडिगाहिज्ज कप्पिअं॥ ४९ : जे नियागं ममायंति कीअमुद्देसिआहडं।
वहं ते समणुजाणंति इअ उत्तं महेसिणा॥ ___ ५0 : तम्हा असण-पाणाइं कीअमुद्देसियाहडं।
वज्जयंति ठिअप्पाणो निग्गंथा धम्मजीविणो॥ आहार, शय्या, वस्त्र और पात्र यदि ये चारों पदार्थ दोष सहित हों तो अकल्प्य है, इसे संयमी साधु ग्रहण न करे और यदि निर्दोष हों तो ग्रहण कर ले ॥४८॥ ___महर्षि भगवान महावीर ने बताया है कि जो साधु नित्याग्र (आमंत्रण दिया हुआ) आहार, क्रीत-कृत (खरीदा हुआ) आहार, औद्देशिक आहार तथा आहृत (लाया हुआ) आहार ग्रहण करते हैं वे प्रकट रूप में षट्जीवनिकाय के वध की
अनुमोदना करते हैं॥४९॥ ___ अतः जिनकी आत्मा संयम-साधना से स्थिर है और जो धर्म मर्यादा के अनुसार जीवन व्यतीत करने वाले हैं, वे परिग्रह त्यागी साधु नियाग, क्रीत-कृत, औद्देशिक और आहृत अशन-पानादि पदार्थ कदापि ग्रहण नहीं करते॥५०॥ __48, 49, 50. If the four things-food, bed, clothing and utensils—have faults they are prohibited. A disciplined ascetic should not accept these. He should accept only what is without any fault.
The great sage Bhagavan Mahavir has stated that the ascetics who accept food that is nityagra (served after invitation), kreet-krit (bought), auddeshik (meant for him), and ahrit (brought) are openly approving of harm to the six classes of living beings.
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
STARA
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