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__13. All sages in this world have condemned falsehood. Nowhere anyone relies on a person who speaks lies. Therefore, an ascetic should completely abstain from telling a lie. ३. अदत्त-त्याग
१४ : चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं।
दंतसोहणमित्तं पि ओग्गहंसि अजाइया॥ १५ : तं अप्पणा न गिण्हंति नो वि गिण्हावए परं।
अन्नं वा गिण्हमाणं पि नाणुजाणंति संजया ।। महाव्रत धारी-साधु सचेतन या अचेतन पदार्थ, अल्प या अधिक पदार्थ और तो क्या दाँत कुरेदने के लिए तृण मात्र जैसे साधारण पदार्थ भी गृहस्थ स्वामी की आज्ञा लिए बिना न तो स्वयं ग्रहण करते हैं, न दूसरों से करवाते हैं, न ही ग्रहण करते हुए दूसरों का अनुमोदन करते है।।१४-१५॥ 3. NEGATION OF TAKING WHAT IS NOT GIVEN ____14, 15. An ascetic who has taken five great vows does not take anything, without the permission of the owner, may it be living or non-living and less or more and even as insignificant as a straw; neither does he induce others to do so nor approve of others doing so. ४. अब्रह्मचर्य-त्याग
१६ : अबंभचरियं घोरं पमायं दुरहिट्ठियं।
नायरंति मुणी लोए भेयाययणवज्जिणो॥ १७ : मूलमेयमहम्मस्स महादोससमुस्सयं।
तम्हा मेहुणसंसग्गिं निग्गंथा वज्जयंति णं॥ जो मुनि संयम को नष्ट करने वाले स्थानों के त्यागी हैं, वे संसार में रहते हुए भी दुर्बलों द्वारा आसेवित और प्रमाद के मूल कारण घोर अब्रह्मचर्य का कभी सेवन नहीं करते॥१६॥
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छठा अध्ययन :महाचार कथा Sixth Chapter :Mahachar Kaha
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