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बाला
मूर्छा परिग्रह है
२० : जंपि वत्थं व पायं वा कंबलं पायुपुंछणं।
तं पि संजमलज्जट्ठा धारंति परिहरंति य॥ २१ : न सो परिग्गहो वुत्तो नायपुत्तेण ताइणा।
मुच्छा परिग्गहो वुत्तो इइ वुत्तं महेसिणा॥ मोक्ष की आराधना करने वाला साधु कल्प के अनुसार जो वस्त्र, पात्र, कम्बल तथा रजोहरण आदि आवश्यक वस्तुएँ रखते हैं वे संयम और लज्जा की रक्षा के लिए ही रखते हैं तथा उपयोग में लाते हैं ॥२०॥ ___ समस्त जीवों की रक्षा करने वाले ज्ञातपुत्र महावीर ने वस्त्र, पात्र आदि उपकरणों को परिग्रह नहीं बताया है। उन भगवान महावीर के वचनों को धारण करने वाले महर्षि (गणधरादिकों) ने मूर्छा भाव को परिग्रह माना है।॥२१॥ ATTACHMENT IS POSSESSION
20, 21. The things like clothing, utensils, blankets, broom, etc., the ascetics pursuing the spiritual path keep, are used only to facilitate their discipline and protect their modesty.
Jnataputra Mahavir, the savior of all beings, has not called these essential equipment possessions'. The sages who followed his teachings (Ganadhars and others) have called attachment as possession. विशेषार्थ :
श्लोक २१. न सो परिग्गहो वुत्तो-इसे परिग्रह नहीं कहा है (वस्त्रादि को) इस सम्बन्ध में K स्पष्टीकरण देते हुए व्याख्याकार आचार्य महाप्रज्ञ का कथन है-“मुनि के वस्त्रों के सम्बन्ध में दो परम्पराएँ हैं-एक निषेध करती है तो दूसरी उसका विधान करती है। वैसे दिगम्बर तथा श्वेताम्बर ये दोनों शब्द शास्त्रीय नहीं हैं किन्तु दोनों परम्पराओं के विचार शास्त्र-सम्मत हैं। भाषा व रचना-शैली की दृष्टि से यह निर्विवाद स्वीकृत है कि उपलब्ध जैन-साहित्य में आचारांग (प्रथम श्रुतस्कन्ध) प्राचीनतम आगम है। आचार चूला (५/२) में मुनि को एक वस्त्र सहित, दो वस्त्र सहित आदि कहा है। अन्य आगमों में मुनि की अचेलक और सचेलक दोनों
श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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BCILLIO
Satuwal
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