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विशेषार्थ :
श्लोक २३. एगभत्तं च भोयणं-एकभक्त भोजन अथवा एक बार खाना। रात्रि-भोजन का सर्वथा निषेध होने के कारण भोजन केवल दिन में ही करना है। अतः इसका अर्थ दिवस-भोजन भी माना जाता है चाहे वह एक बार हो या अधिक। आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज का कथन है-एक बार भोजन करने से आयुष्यप्राण की रक्षा भी की जा सकती है तथा देह तथा संयम की परिपालना भी। इसलिए एक बार भोजन करने वाले को नित्य तपस्वी बतलाया है। एकभक्त शब्द से तद्दिवस (वह दिन) समझा जा सकता है। विशेष परिस्थिति में एक बार से अधिक भी आहार किया जा सकता है। (दशवै., पृष्ठ ३३८) __इस सम्बन्ध में चूर्णिकार व टीकाकार एक मत हैं-उनके अनुसार दिन में केवल एक बार भोजन करना एकभक्त भोजन है। आचार्य वट्टकेर के अनुसार भी-“सूर्य के उदय और अस्त काल की तीन घड़ी छोड़कर अर्थात् मध्यकाल में एक मुहूर्त, दो मुहूर्त या तीन मुहूर्त काल में एक बार भोजन करना, यह एकभक्त-मूलगुण है।” (मूलाचार-मूलगुणाधिकार ३५)
अन्य विभिन्न संदर्भो से यह भी ज्ञात होता है कि दिन में एकाधिक बार भोजन भी किया जाता था तथा प्रातःकाल, सायंकाल में भी। लगता है यह बात विशेष परिस्थिति के लिए है। ओघनियुक्ति में विशेष स्थिति में प्रातः, मध्याह्न तथा सायं तीनों समयों में भोजन की अनुज्ञा दी है।
ELABORATION:
(23) Egbhattam can also mean—that particular day. This may be interpreted as another way of presenting the rule of not eating during the night. Then this verse would mean eating only during the day, may be once, may be many times. According to Acharyashri Atmaram ji M. one meal a day is enough for subsistence as well as practicing discipline. That is why one who takes just one meal a day is called 'ever austere'. However, in special situation more than one meal can be taken. (Dashavaikalik Sutra, page 338)
In this regard the commentators are unanimous. According to them Egbhattam means only one meal a day. Acharya Vattaker also says, “Leaving three ghadis (45 minutes) from dawn and from dusk, having just one meal during the remaining three
छठा अध्ययन : महाचार कथा Sixth Chapter : Mahachar Kaha
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