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quarters of the day is called the true Egbhattam.” (MoolacharMoolgunadhikaar 35)
In some sources there are mentions that more than one meal a day were taken. According to others, morning and evening meals were also prevalent. It appears that these were exceptions. In the Ogh Niryukti morning, noon and evening meals are also allowed under special circumstances.
२४ : संति मे सुहमा पाणा तसा अदुव थावरा।
जाइं राओ अपासंतो कहमेसणियं चरे? ॥ संसार में जो त्रस और स्थावर प्राणी हैं, उनमें बहुत से अतीव सूक्ष्म प्राणी हैं। जब साधु रात्रि में इन्हें देख ही नहीं सकता तो फिर किस प्रकार इनकी रक्षा करता हुआ एषणीय निर्दोष आहार को भोग सकेगा॥२४॥
24. Of the mobile and immobile beings in this world there are many that are very minute. When it is not possible for an ascetic even to see these during the night how can he eat pure food avoiding harm to these. विशेषार्थ :
श्लोक २४. आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज इस श्लोक के आशय का विस्तार करते हुए कहते हैं-“जिस प्रकार रात्रि-भोजन विवर्जित है उसी प्रकार दिन में भी जो
अन्धकारयुक्त स्थानों पर बैठकर भोजन किया जाता है वह सर्वथा त्याज्य है। क्योंकि जो दूषण रात्रि में लगता है, वह यहाँ पर भी लग सकता है। (दशवैकालिक सूत्र पृष्ठ ३५०)
र
ELABORATION: __(24) Acharyashri Atmaram ji M. further adds-“As eating during the night is prohibited so is eating during the day sitting at dark and gloomy places and for the same reasons. (Dashavaikalik Sutra, page 350) २५ : उदउल्लं बीयसंसत्तं पाणा निवडिया महिं।
दिआ ताइं विवज्जेज्जा राओ तत्थ कहं चरे? ॥
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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