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____ अग्नि जात-तेज-जन्म से ही तेजोमय होती है दयालु-मुनि ऐसी अतीव तीक्ष्ण, सब ओर से धार वाले शस्त्र के समान एवं सर्व प्रकार से दुराश्रय (जिस पर काबू करना कठिन) अग्नि जलाने की कदापि इच्छा नहीं करते॥३३॥ 9. NEGATION OF HARMING FIRE-BODIED BEINGS
33. Fire is radiant by nature. It is like an extremely sharp many edged weapon and difficult to contain. The compassionate ascetics never desire to burn such a fire. विशेषार्थ :
श्लोक ३३. तिक्खमन्नयरं सत्थं-अन्य शस्त्रों से अधिक तीखा। परशु, त्रिशूल, तलवार आदि शस्त्र एक, दो, तीन या चार फाल होते हैं। अतः उतनी ही धार होती है। किन्तु अग्नि के अगणित फाल व अगणित धार होती है। अतः यह सभी शस्त्रों से अधिक तीखा है। ELABORATION:
(33) Tikkhamannayaram Sattham–sharper than other weapons; an axe, a double edged sword, a trident are weapons having one, two or three cutting edges. But fire has cutting edges all around, therefore, it is a many edged weapon sharper than all other weapons.
३४ : पाईणं पडिणं वावि उड्ढं अणुदिसामवि।
अहे दाहिणओ वा वि दहे उत्तरओ वि अ॥ ३५ : भूयाणमेसमाघाओ हव्यवाहो न संसओ।
तं पईवपयावट्ठा संजया किंचि नारभे॥ ३६ : तम्हा एअं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं।
तेउकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए॥ प्रज्वलित हुई अग्नि पूर्व और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, ऊर्ध्व और अधःदिशाओं में तथा ईशान आदि विदिशाओं में रहे हुए जीवों को स्पर्श करती हुई उनको भस्मीभूत कर देती है॥३४॥
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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