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Minuunuwal
यह अब्रह्मचर्य सब अधर्म का मूल है और महान् से महान् दोषों को उत्पन्न करने वाला है। इसीलिए निर्ग्रन्थ साधु इस मैथुन के संसर्ग का सम्पूर्ण भावपूर्वक परित्याग करते हैं॥१७॥
4. CELIBACY ___16, 17. The ascetics who abstain from the discipline destroying activities, never indulge, as the weaklings do, in despicable lascivious activities which are the root cause of illusion.
Sexual intercourse is the root cause of all evil and it is the soil in which vices thrive. Therefore, a nirgranth abstains from any indulgence in it through the body or the mind. विशेषार्थ : ___ श्लोक १७. मेहुण संसग्गिं-मैथुन के संसर्ग को यह मैथुन की ओर प्रेरित करने वाली सभी क्रियाओं की ओर इंगित है। स्त्रियों का एकान्त सान्निध्य, कामोत्तेजक वार्ता, चित्र दर्शन आदि प्रत्येक का निषेध इस निर्देश में सम्मिलित है।
ELABORATION:
(17) Mehun Samsaggim--this indicates at abstaining from any and all activity leading to sexual intercourse and includes meeting with opposite sex in solitude, sexually exciting conversation, looking at erotic pictures, etc.
५. परिग्रह-वर्जन
१८ : बिडमुब्भेइमं लोणं तेल्लं सप्पिं च फाणि।
न ते सन्निहिमिच्छन्ति नायपुत्तवओरया॥ जो मुनि, ज्ञातपुत्र (भगवान महावीर) के प्रवचनों पर दृढ़ आस्था रखने वाले हैं, वे बिड-लवण, सामुद्रिक-लवण, तेल, घृत तथा फाणित-पतला गुड़ आदि पदार्थों का संग्रह करने की इच्छा नहीं करते ।।१८॥ २०४
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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