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compassionate ascetic should absolutely abandon killing of beings which is terrible in its effect. २. असत्य-त्याग
१२ : अप्पणट्ठा परट्ठा वा कोहा वा जइ वा भया।
हिंसगं न मुसं बूया नो वि अन्नं वयावए॥ - क्रोध अथवा भय के कारण से, अपने लिए तथा दूसरों के लिए, साधु पर-पीड़ाकारक वचन तथा मिथ्या-भाषण न स्वयं करे और न दूसरों से करवाये॥१२॥ 2. NEGATION OF TELLING LIES
12. Driven by anger or fear, either for himself or for others, an ascetic should not utter painful or false words nor should he inspire others to do so. विशेषार्थ :
श्लोक १२. कोहा वा-क्रोध द्वारा प्रेरित। यहाँ मिथ्या-भाषण के हेतु स्वरूप क्रोध तथा भय का उल्लेख सांकेतिक है तथा इसमें अन्य सभी हेतुओं का समावेश हो जाता है। यथाक्रोध, मान, माया, लोभ, भय तथा हास्य।
हिंसगं-हिंसकं-यहाँ हिंसक शब्द द्वारा पर-पीड़ादायक वचन कहने का निषेध है। ELABORATION:
(12) Koha va-mention of anger and fear here includes all driving sentiments--anger, conceit, deceit, greed, fear and laughter. Himsagam—here this means words that cause pain to others.
१३ : मुसावाओ उ लोगम्मि सव्वसाहूहिं गरिहिओ।
___ अविस्सासो य भूयाणं तम्हा मोसं विवज्जए। इस संसार में सभी साधु पुरुषों ने असत्य-भाषण की निन्द्रा की है। असत्य बोलने वाला मनुष्य कहीं भी विश्वास योग्य नहीं रहता। अतः साधु को असत्य भाषण का सर्वथा परित्याग करना चाहिए॥१३॥
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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