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by the nirgranth's desirous of the fruit of dharma (moksha or liberation). विशेषार्थ : __श्लोक ४. धम्मत्थ-कामाणं-अर्थात् धर्म के अर्थ फल रूप में मोक्ष की कामना रखने वाले। आचार्य भद्रबाहु ने कहा है-धम्मस्स फलं मोक्खो-धर्म का अन्तिम फल मोक्ष है। अतः वही धर्म का प्रयोजन है, अर्थ है।
ELABORATION:
(4) Dhammttha-kamanam-Those desirous of the meaning or fruit of dharma, which is liberation. Acharya Bhadrabahu saysthe ultimate fruit of dharma is liberation. Therefore, that is the meaning or purpose of dharma.
५ : नन्नत्थ एरिसं वुत्तं जं लोए परमदुच्चरं।
विउलट्ठाणभाइस्स न भूयं न भविस्सई॥ जैसा अत्यन्त दुष्कर आचार निर्ग्रन्थ-शासन में वर्णित है, वैसा अन्यत्र कहीं नहीं है। मोक्षमार्ग की साधना का ऐसा उत्कृष्ट आचार न अतीत में कभी हुआ और न भविष्य में कभी होगा।।५॥
5. The extremely difficult to practice conduct mentioned in the Nirgranth order has no parallel. Such superlatively perfect conduct directed at the spiritual path for liberation was neither formulated before this nor will it be done in the future. विशेषार्थ : __ श्लोक ५. इस सन्दर्भ में औपपातिक सूत्र (१/७९) में वर्णित यह प्रसंग यहाँ विशेष महत्त्व रखता है। भगवान महावीर जब चम्पानगरी में पधारते हैं तो चम्पा-नरेश कूणिक सपरिवार भगवान की देशना सुनने जाता है। भगवान को उत्कृष्ट धर्मप्रवण वाणी सुनकर उसका हृदय धर्म उल्लास से गद्गद हो जाता है। धर्मप्रीति से भर जाता है। वह उठकर “तिक्खुत्तो" के पाठ से वन्दना करके अपना हृदयोद्गार प्रकट करता है
"सुयक्खाए ते भंते ! निग्गंथे पावयणे। सुपण्णते ते भंते ! निग्गंथे पावयणे।
छठा अध्ययन : महाचार कथा Sixth Chapter : Mahachar Kaha
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