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Agriilium
Kunwa
८९ : आभोइत्ताण नीसेसं अइयारं जहक्कम।
गमणागमणे चेव भत्तपाणे च संजए॥ गोचरी लेकर आने वाला मुनि कायोत्सर्ग में गमनागमन की क्रिया से तथा अन्न-पानी के बहरने से लगे हुए समस्त अतिचारों को कायोत्सर्ग में अनुक्रम से एक-एक करके स्मरण करके अपने हृदय में धारण करे॥८९॥
89. This ascetic who has brought alms should, while meditating, recall all the faults committed during every act of the process, beginning with going out to collect alms and ending with his return, all in the correct sequence. ९० : उज्जुप्पन्नो अणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा।
आलोए गुरुसगासे जं जहा गहिअं भवे॥ सरल स्वभावी एवं आकुलतारहित साधु जो पदार्थ जिस रूप से ग्रहण किया हो उसकी उसी रूप से स्थिर मन होकर गुरुदेवश्री के समक्ष आलोचना करे॥१०॥
90. The humble and serene shraman should critically review before the guru exactly what he got as alms and how he got it. ९१ : न सम्ममालोइअं होज्जा पुट्विं पच्छा व जं कडं।
पुणो पडिक्कमे तस्स वोसट्ठो चिंतए इमं॥ जिन सूक्ष्म अतिचारों की सम्यक् प्रकार से आलोचना न हुई हो और जो पूर्वकर्म तथा पश्चातकर्म दोष लगे हों, उन्हें आगे पीछे-किये हों तो उनका फिर प्रतिक्रमण करे और पुनः कायोत्सर्ग करके चिंतन करे॥११॥
91. The subtle faults or the preceding and consequential faults related to an action, that were overlooked or those that were misplaced in the sequence during the initial review, should be reviewed and meditated upon again.
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पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (Ist Section)
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