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छठ्ठम अज्झयणं : महायार कहा छठा अध्ययन : महाचार कथा
SIXTH CHAPTER : MAHACHAR KAHA
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आचार-गोचर की जिज्ञासा
१ : नाणदंसणसंपन्नं संजमे य तवे रयं।
गणिमागमसंपन्नं उज्जाणम्मि समोसढं॥ २ : रायाणो रायमच्चा य माहणा अदुव खत्तिया।
पुच्छंति निहुअप्पाणो कहं भे आयारगोयरो? ॥ राजा, राज-मन्त्री, ब्राह्मण तथा क्षत्रिय आदि लोग उद्यान में पधारे हुए ज्ञान-दर्शन-सम्पन्न, संयम और तप की क्रियाओं में पूर्णतया जागरूक आगम के ज्ञाता गणिवर से पूछते हैं कि भगवन् ! आपका आचार-गोचर कैसा है ? बताने की कृपा करें॥१-२॥ THE QUESTION __1, 2. The king, his ministers and other Brahmins and Kshatriyas ask the Agam knowing Gani (a great ascetic) who is endowed with right knowledge and perception and is strict follower of practices of discipline and austerities, “Bhante! Please tell us about your conduct and other activities." विशेषार्थ :
श्लोक १, २. नाण-ज्ञान-आचार्य के संदर्भ में ज्ञान के चार विकल्पों में से कोई भी हो सकता है। ये चार विकल्प हैं-(१) मति और श्रुत-दो ज्ञान-सम्पन्न, (२) मति, श्रुत और अवधि अथवा मनःपर्यव-तीन ज्ञानयुक्त, (३) मति, श्रुत, अवधि तथा मनःपर्यव-चार ज्ञानयुक्त, एवं (४) केवलज्ञानयुक्त। ज्ञान के साथ दर्शन रहता ही है। इसलिए यहाँ नाण-दंसण-संपन्ने विशेषण है।
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
Saturns
Awamin
Gmai
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