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MULIDIN
[ छठा अध्ययन : महाचार कथा ]
प्राथमिक
इस अध्ययन का नाम महाचार कथा है।
तीसरे अध्ययन का नाम था क्षुल्लकाचार कथा अर्थात् आचार-विचार का संक्षिप्त वर्णन। इस दृष्टि से इस अध्ययन में साधु के आचार-अनाचार का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज के कथनानुसार इसकी पृष्ठभूमि में एक प्रसंग जुड़ा है। ___ कोई एक भिक्षा विशुद्धि का ज्ञाता मुनि नगर में भिक्षा के लिए गया। मार्ग में उसे राजा, राज-मंत्री आदि मिले। मुनि को देखकर उन्होंने जिज्ञासा की-“भगवन् ! आपका आचार-गोचर-क्रिया-कलाप क्या हैं ? कृपया हमें बताइये।” मुनि ने कहा-“राजन् ! अभी मैं भिक्षा के लिए निकला हूँ इस समय धर्म-कथा करना उपयुक्त नहीं होगा। फिर अमुक उद्यान में हमारे आचार्य भगवन्त विराजमान हैं, वे बड़े ज्ञानी हैं। अच्छा हो आप उनसे अपनी जिज्ञासा का समाधान प्राप्त करें।" ____ मुनि का यह उत्तर पाकर राजा आदि आचार्यश्री के समक्ष आते हैं और अपनी जिज्ञासा रखते हैं। समाधान स्वरूप आचार्यश्री का वह कथन इस अध्ययन में वर्णित है।
तृतीय अध्ययन में संक्षिप्त रूप में वर्णित अनाचारों का इस अध्ययन में विस्तार के साथ वर्णन हुआ है। इसमें उन अठारह स्थानों का वर्णन है जो मुनि के लिए अनाचरणीय अकरणीय है। उनमें उत्सर्ग-अपवाद नियमों का भी संकेत मिलता है।
नियुक्ति के अनुसार यह अध्ययन प्रत्याख्यान प्रवाद नामक नौवें पूर्व की तीसरी वस्तु से उद्धृत है।
FOLILLER
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श्रीदशवकालिक सूत्र : ShriDashavaikalik Sutra
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